तुझे खत मैं लिखती हूँ आज भी
तुझे खत मैं लिखती हूँ आज भी
तू ख्वाबों में तो रोज़ आए मिरे, पर हकीकत सा बन कभी आए ना
तुझे खत मैं लिखती हूं आज़ भी, पर जवाब कभी कोई आए ना
काश तू रहता मेरी नज़्म बन कोई, और गाता मेरे हर गीत में
कैसे सुनाऊं दिल- ए- दास्तां तुझे, बतला दे मेरे मनमीत मैं
तुझे ख़्वाबों में जीती हूं आज़ भी, पर दीदार कभी हो पाए ना
तुझे खत मैं लिखती हूं आज़ भी, पर जवाब कभी कोई आए ना
चाहता है दिल मिले हर खुशी तुझे, बेशक दूर तुझसे जाऊं मैं
लिखे में तेरे कोई अल्फाज़ बन, काश कभी सिमट जाऊं मैं
कुछ पा भी ले गलत ये दिल तुझमें, तो गलत कभी कह पाए ना
तुझे खत मैं लिखती हूं आज़ भी, पर जवाब कभी कोई आए ना।