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Kaushal Kishor

Abstract

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Kaushal Kishor

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तुझे चाहना अच्छा लगता है

तुझे चाहना अच्छा लगता है

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ना जाने क्यों तुझे हर पल चाहना अच्छा लगता है।।


हां मुझे पता है तुम किसी और से जुड़ी हो,

पल भर के लिये ही बस मुझसे जुड़ी हो।

फिर भी मेरा मन हर पल तुझे ढुंढता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है।।


हाँ मुझे होना चाहिए था तेरे शहर से खुश

पर तेरे शहर से मुझे जलन होती है,

क्योंकि तेरे शहर में तेरी नजरें किसी और को ढुंढा करती है।

फिर भी तुझे खुश देखना अच्छा लगता है, 

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है,।।


सफर में होती हो साथ तो ना ही रास्ता

और ना ही मंजिल नजर ना आती है,

समय भी बन जाता है मेरा दुश्मन,

क्योंकि सफर में उसकी भी गति तेज हो जाती है।

फिर भी तेरे साथ सफर का वो हर पल सुकूँ सा देता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है।।


जी चाहता है रोक लूँ उस वक्त को जब तुम

मेरे हाथों में अपने हाथ रखकर बातें करती हो,

फिर सोचता हूँ गुजर ही जाये वो वक्त जब हाथों में

हाथ लेकर भी किसी और की बातें करती हो।

कुछ पल ही सही तुम्हारा वो हाथ थामना अच्छा लगता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है,

ना जाने क्यों तुझे चाहना अच्छा लगता है।।


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