माँ तेरी याद
माँ तेरी याद
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इस अनजाने से शहर में, इस यादों की डगर में,
सच कहता हूँ माँ, तेरी याद बहुत तड़पाती है।
जब मैं वापस आता हूँ, खुद ही में खो जाता हूँ,
आँखों से छलकती आँसू को झूठी मुस्कान छुपाती है।
सच कहता हूँ माँ, तेरी याद बहुत तड़पाती है।
बैठता हूँ जब खाने को, मन होता कुछ लाने को,
तरह तरह के भोजन में भी, स्वाद कहाँ अब आती है!
सच कहता हूँ माँ, तेरी याद बहुत तड़पाती है।
कशमकश में हो चाहे मन, या बिलख रही हो व्यथा से तन
वो गोद में सिर को सहलाना याद बहुत ही आती है
सच कहता हूँ माँ, तेरी याद बहुत तड़पाती है।
जब मन हो यादों के घेरे में या हो घने अंधेरे में,
तब नजर नहीं कुछ आती है!
सच कहता हूँ माँ, तेरी याद बहुत तड़पाती है।-