तरु का तराना
तरु का तराना
विलम्बित लय सा है ये रास्ता,
शडज से प्रारम्भ होता तो है,
मगर निषाद तक पहुँचता नहीं,
न्यास का अनुभव करता हुआ,
इस जीवन राग में,
रमणीय ठहराव ले आता है,
इस पर्णहीन तरु की तरह,
जिसका ना ही कोई,
आरोह है ना अवरोह,
जिसके स्थायी और अंतरा दोनों,
सिर्फ़ एक ही स्वर से बने हैं,
एक अत्यन्त लम्बी प्रतीक्षा के।