तन्हाई के आलम-ए-बयाँ
तन्हाई के आलम-ए-बयाँ
हम खोजतें है खुद को,
इस सुनसान महफ़िल में,
तलाशते है तुझको,
इस तन्हा-ए-दिल में।
ज़मानें के असर में खो से गए है,
लोगों की नज़र में गुमनाम हो से गए है,
तुझे पाने की चाहत तो है,
तुझे खोने की घबराहट तो है।
दूसरे का होता देख मैं कुछ कर नही सकता,
जीने की ख्वाहिश तो नही लेकिन मार भी नही सकता,
अकेलेपन के संसार में बसते चले जा रहे है,
गमों के जाल फसते जा रहे है।
लेकिन तुझे क्या तू तो बेफ़िक्र चली जा रही है,
बातें नज़रों से अनकही कही जा रही है,
ठहर कर ज़रा बातों पर ध्यान दे,
मेरी भावनाओं का मान दे।
ये ज़िंदगी तेरे लिए ही रुकी हुई है,
ये नज़रे तेरे लिए ही झुकी हुई है,
ये कहकर उठ जाता हूँ सपने से,
रूठ जाता हूँ फिर हालात-ए-अपने से।