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Amit Singh

Drama

4.3  

Amit Singh

Drama

तलब का ठिकाना

तलब का ठिकाना

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तलब का ठिकाना बहुत है, पर उसका मिल जाना ठीक, उस बच्चे की जिद्द की तरह है, जो मेले मे बिकते हर खिलौने को पाने की चाह रखता है !

तलब का ठिकाना बहुत है, पर उसका मिल जाना ठीक, उस मौसम की तरह है, जैसे मृग अपनी तृष्णा शांत करने को तड़पता रहता है !

तलब का ठिकाना बहुत है, पर उसका मिल जाना ठीक,

उस माँ के गोद में सोने की चाह जैसा है,जो बढ़ते समय और उम्र के साथ मात्र एक कल्पना भर रह जाता है !

तलब का ठिकाना बहुत हैं, पर उसका मिल जाना ठीक,

उस पहले प्यार की तरह हैं, जिसका सास्वत सच होना, सब के नसीब में नही लिखा होता है !

तलब का ठिकाना बहुत हैं, पर उसका मिल जाना ठीक,

उस लेखक की लिखी पहली कविता की तरह है, जिसे वो सही शब्दावली में गुथना चाहता हैं !

तलब का ठिकाना बहुत हैं, पर उसका मिल जाना ठीक,

उस समांतर बहती नदियों के पानी जैसा हैं, जिसका आपस मे मिलना रेत के उड़ने के इंतजार में बसी होती हैं

तलब का मिल जाना मौत के आगे, जिंदगी जीने जैसी होती हैं !

तलब का मिल जाना मौत के आगे, जिंदगी जीने जैसी होती हैं !


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