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Amit Singh

Inspirational Comedy

2.3  

Amit Singh

Inspirational Comedy

प्रकृति-प्रकोप

प्रकृति-प्रकोप

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मत खेल प्रकृति से तू इतना, कर देगी तुम्हें ये नंगा,

आज ये प्रकोपी बाढ़, तेरे घरों को डूबा रही है।

 

कल चिलचिलाती धूप पड़ेगी, तुझे और भी महँगी,

अभी भी सम्भल जा, अभी तो बस ये शुरुआत है।

 

ये प्रकृति कल कहीं, तुझे तेरी औकात न बता दे,

कहीं तेरी बनायी मजबूत नींव की ईंट न हिला दे।

 

दौड़ा तू मोटर गाड़ी, ये पड़ेगा तेरे समय पे भारी,

औद्योगिकी की चक्कर में, तूने आँखें मूंद ली हैं।

 

प्रकृति ने तुझे बसाया है, तुझे ये समझ नहीं आया है,

खोद रहा है तू खुद की कब्र, रख ले बेटा अब तू सब्र।

 

कर ले, मानव अब तू सब्र, अब तू सब्र।।


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