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Neha Tickoo

Abstract

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Neha Tickoo

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तलाश में

तलाश में

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वह जो पल मेरा कहीं खो गया

उसे ढूंढ़ते है फिर चलो

वह जो फुर्सतों का सुकून था 

उसे ढूंढ़ लाएं फिर चलो।


बचपन की वह मासूमियत 

हम छोड़ आए है कहीं

वह खिलखिलाती मुस्कुराहट 


चेहरे पे अब मिलती नहीं

बचपन के हर एक खेल को

वह दोस्तों की रेल को हम

ढूंढ़ लाएं फिर चलो।


खेतों की पगडंडियों पर

मीलों चला करते थे हम

जाए जहां तक भी नज़र


चलते वहीं पर थे कदम

इमारतों में वह दब गई

मिट्टी की सौंधी सी महक को

ढूंढ़ लाएं फिर चलो।


दीयों की वह रोशन दिवाली

धुएं में सिमट के रह गई

होली में भिखरे रंगों की लाली


कालक में है बदल गई

जश्न के इस दौर में 

भुझे हुए दिलों की रौनक को

ढूंढ़ लाएं फिर चलो।


मकानों की इस भीड़ में

घर कहीं सुनसान है

दूरियां तो घट गई

तन्हा मगर इंसान है


इंसानों के जहां में

भूली हुई इंसानियत 

ढूंढ़ लाएं फिर चलो।


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