थक गया मैं
थक गया मैं
बढ़ गया लोकडाउन घर मे पक गया मैं ।
माँजकर बरतन झाड़ू पोंछा थक गया मैं ।
करता था कभी श्रीमती जी के आराम को ।
करके रोज चूल्हा चौकी घर नच गया मैं ।
बच्चे संभालो खाना बनाओ मैं डम खुश है ।
फुरसत ना मिले काम कभी झक गया मैं ।
कब खत्म होगा कोरोना बाजार नजारा होगा ।
मिली ना गरम चाय माथा मथ गया मैं ।
जरूरी है रहना घर मे कोरोना खतरा बाहर।
धो धो कर साबुन हाथ आधा कट गया मैं ।
कहती श्रीमती जी गए गर बाहर रिपोर्ट करूंगी ।
सुन सुन कर बात मैं डम नथनी नथ गया मैं ।
कहती लगे न मन किताब पढ़ो कविता लिखो ।
मन ना लगे कविताई आधा झटक गया मैं ।
बाजार बंद शहर बंद मोहल्ला बंद क्या करे ।
बिना शब्जी चटनी बेस्वाद खाना गटक गया मैं ।
हे प्रभु अब तो रहम करो कोरोना खत्म करो ।
खिले हंसी सबके मुख इसी सोच महक गया मैं ।