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Shyam Kunvar Bharti

Abstract

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Shyam Kunvar Bharti

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थक गया मैं

थक गया मैं

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बढ़ गया लोकडाउन घर मे पक गया मैं ।

माँजकर बरतन झाड़ू पोंछा थक गया मैं ।

करता था कभी श्रीमती जी के आराम को ।

करके रोज चूल्हा चौकी घर नच गया मैं ।

बच्चे संभालो खाना बनाओ मैं डम खुश है ।

फुरसत ना मिले काम कभी झक गया मैं ।

कब खत्म होगा कोरोना बाजार नजारा होगा ।

मिली ना गरम चाय माथा मथ गया मैं ।

जरूरी है रहना घर मे कोरोना खतरा बाहर।

धो धो कर साबुन हाथ आधा कट गया मैं ।

कहती श्रीमती जी गए गर बाहर रिपोर्ट करूंगी ।

सुन सुन कर बात मैं डम नथनी नथ गया मैं ।

कहती लगे न मन किताब पढ़ो कविता लिखो ।

मन ना लगे कविताई आधा झटक गया मैं ।

बाजार बंद शहर बंद मोहल्ला बंद क्या करे ।

बिना शब्जी चटनी बेस्वाद खाना गटक गया मैं ।

हे प्रभु अब तो रहम करो कोरोना खत्म करो ।

खिले हंसी सबके मुख इसी सोच महक गया मैं ।



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