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Ankit Raj

Abstract

3  

Ankit Raj

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तेरी सिसकियाँ

तेरी सिसकियाँ

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तेरी ये जो सिसकियाँ हैं

अब मुझे भी सुनाई देती हैं

तुम बैठी तन्हा मायूस हो

तेरी तन्हाई महसूस होती है


तेरे नयन आश्रु से भरे हुए हैं

मुझको भी अश्रु से भींगा रही

दूर हो कर हमसे तुम तो

फिर भी तस्वीर देख निहार रही


तू सितारों में तन्हा चाँद अकेली

मैं भी बादल बन भटक रहा हूँ

तेरी ओठों से मुस्कान चली गई

तेरे बिन मैं भी बिखर रहा हूँ


तुम भी रह रही हो तन्हा

तेरे बिन मैं भी अकेला हूँ

तेरे बिन बागों में रौनक नहीं

अब तेरा इंतजार कर रहा हूँ


नई किरणें फिर से खिलेंगी

फिर से नया सवेरा लायेंगी

ये वक्त जो ठीक नहीं चल रहा

फिर से नई शुरुआत कर पायेंगे।


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