तारीफ़-ए-लायक कोइ मेरा दुश्मन भी अगर हो
तारीफ़-ए-लायक कोइ मेरा दुश्मन भी अगर हो
तारीफ़-ए-लायक कोई
मेरा दुश्मन भी अगर हो,
तारीफ-ए-फूल मैं बरसाऊंगा ज़रूर।
माफ़ी के लायक भले वो हो ना हो,
माफ़ी मैं दूँगा उसे भी ज़रूर।
क्या पायेगा, क्या नहीं पायेगा,
ऐसी कोइ बात ही कहाँ,
नफरत से भरी वो ज़हरीला प्याला
वो फिर रिक्त हो जायेगा,
खुशहाली का वो खाली प्याला,
वो फिर भर जायेगा।