तारे हैं बाराती
तारे हैं बाराती
चांद जब
पूर्णिमा के दिन
सज धज कर
सेहरा बांधकर
चांदनी को ब्याहने
घोड़ी पर सवार
होकर निकलता है
तब सारे तारे
बाराती बनकर
जमकर डांस करते हैं
आतिशबाजी करते हैं
मौज मस्ती करते हैं ।
आसमान में वह दृश्य
बड़ा अद्भुत होता है
बादल ढ़ोल पीटते हैं
बिजली उजाला करती है
साथ साथ में
संगीत बिखेर कर
स्वर लहरी बहाती है ।
ग्रह नक्षत्र फूफा बनकर
खूब फूं फां करते हैं
रूंसा मटकी करते हैं ।
बड़े बड़े सितारे
ताऊ की तरह
व्यवहार करते हैं
टोका टाकी करते हैं ।
चांदनी सौंदर्य का
मेकअप करके
अपनी छटा बिखरा रहीं है
गजब ढा रही है
मन ही मन मगन हो रही है
दिल में अरमां पिरो रही है ।
इंद्रधनुष ने खूबसूरत सा
एक मंडप सजाया है
जिसे मोगरे के फूलों ने
क्या खूब महकाया है
अनेकानेक व्यंजन बने हैं
उनकी महक ने
सबकी भूख बढ़ा दी है
चांद की साली किरन ने
जूता छुपाई की रेट
अचानक से बढ़ा दी है ।
अप्सराएं मंगल गान कर रहीं हैं
अपने नृत्य से समां बांध रहीं हैं
हंसी ठिठोली कर रहीं हैं
बारातियों को गारी गा रहीं हैं ।
सभी देवता पुष्प वर्षा कर रहे हैं
वर वधू को अपना
आशीर्वाद दे रहे हैं ।
सप्त ऋषि मंडल
श्लोक उच्चारण कर रहे हैं
फेरे करवा रहे हैं
ध्रुव तारा की साक्षी में
वचन भरवा रहे हैं ।
लेकिन , एक समस्या हो गई
कम पैसे मिलने के कारण
चांद की साली किरन रूठ गई ।
फटाफट कुबेर जी को बुलवाया
उनसे दौलत का खजाना खुलवाया
साली जी को मन माफिक दिलवाया
तब जाकर शादी का आनंद आया ।
बादलों की पालकी पर
सवार होकर वर वधू चले गए
तारे तो बाराती थे
नाच गाकर , खा पीकर
सौ दो सौ गिलास तोड़कर
दो चार चम्मच जेब में डालकर
रफूचक्कर हो गये ।
कुछ बाराती वहीं फैल गए
तो कुछ दो पैग लगाकर चलते बने
सबको आदर पूर्वक विदा कर
लड़की वाले भी हुए प्रसन्न घने ।
