STORYMIRROR

Mahavir Uttranchali

Classics

3  

Mahavir Uttranchali

Classics

स्वर्णिम अध्याय है माँ

स्वर्णिम अध्याय है माँ

1 min
338

आदि श्रृष्टि का स्वर्णिम अध्याय है माँ

करुणा-ओ-ममता का पर्याय है माँ।


धर्म-कर्म की सारगर्भित व्याख्या में

जीवन गीता का स्वाध्याय है माँ।


वो द्रवित होती संतानों के दुःख में

तो सुख में भी नयन छलकाय है माँ।


तू भक्ति, तू शक्ति, तू ही द्वार मुक्ति

ऋषि-मुनि भी तुझसे सब कुछ पाय है माँ।


विघ्न कटे तेरे आशीष वचनों से

तू सदैव मंगल रूप उपाय है माँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics