स्वार्थी
स्वार्थी
जब काम निकालने की
'नौबत आए',
तो हाथ-पैर पकड़ने से भी
पीछे 'नहीं हटते हैं' लोग...
लेकिन अपना 'काम
निकल जाने के बाद'
ऐसे मुँह फेर लेते हैं लोग,
जैसे मददगार 'इंसान नहीं',
खाद्य पदार्थों पर
भिनभिनाती 'मक्खी-सा' हो...
ऐसे कैसे अपना 'मुखौटा'
बदल-बदल कर
आपस में
मिला करते हैं लोग...?
इतने स्वार्थी
'कैसे' बन जाते हैं लोग...?
अपना काम
हासिल 'करने के लिए'
वो जो 'खातिरदारी' करते
थकते नहीं हैं लोग,
वही फिर
'स्वार्थ सिद्धि के पश्चात'
अपना 'रवैया' ही
बदल देते हैं लोग...!
ऐसे 'कैसे'
अपना आचार-व्यवहार ही
बदल दिया करते हैं लोग...??
ये 'कौन लोग हैं',
जो इतनी 'बारीकी से'
स्वार्थी बन जाते हैं...??
क्या 'यही फल' मिलता है
हमें सेवा कार्य के बाद...???
क्यों इस 'अत्याधुनिक' समाज व्यवस्था में
साफ दिल से नहीं,
अपनी 'दकियानूसी दिमाग से'
काम लिया करते हैं लोग...???
