सवालात
सवालात
यहाँ कत्ल नहीं देखते,
देखे जाते इरादे।
कानून की किताबों के,
अल्फाज ही कुछ ऐसे हैं।
बेखौफ घूमती हैं कातिल,
तो मैं भी क्या करुँ।
अदालत की जुबानी,
बयानात ही कुछ ऐसे हैं।
फाइलों पे धूल पड़ी,
चाटती हैं दीमकें।
जनता लाचार तहकीकात,
ही कुछ ऐसे हैं।
तारीख दर तारीख पे,
तारीखें मिलती रही।
माँगे इंसाफ कौन,
खैरात ही कुछ ऐसे हैं।
आह भी भरो तो,
ठोकता है जुर्माना।
बहरे कानून के,
जज्बात हीं कुछ ऐसे है।
फरियाद अपनी लेके,
जाएँ तो जाएँ किधर।
अल्लाह भी बेजुबां है,
सवालात ही कुछ ऐसे हैं।