स्वागतम् बसंत
स्वागतम् बसंत
स्वागतम् बसंत, तव सुआगतम बसंत।
सजा रहे घर द्वार, शुभ आगमन है कंत।
कमलपुष्प प्रमुदित लताएँ खिलखिलाएँ।
चहक रहे पक्षीगण नवताल सुर सजाएँ।
आल्हादित है गगन, सूर्य रश्मियाँँ प्रखर,
आगमन ऋतुराज का, स्वागत में गुनगुनाएँ।
चहुँदिशि हरीतिमा तृण पुष्प बेल हैं अनंत।
सजा रहे घर द्वार, शुभ आगमन है कंत।
भंवरे रसपान को लालायित हुए मगन।
अनुपम मनोहर दृश्य साक्षी हुआ गगन।
आलोकित सृष्टि जड़ में भी चेतना जगी,
सांंध्यकाल सुखमय, नर जीव का शयन।
ऋतुराज अनुपम छवि,योगीराज हुए संत।
सजा रहे घर द्वार, शुभ आगमन है कंत।
बहुरंग पक्षीगण उल्लासित हो चहक रहे।
लतापुष्प सुन्दरतम प्रमुदित हो महक रहे।
उल्लासित सकल सृष्टि, है जो वर्णनातीत,
उर मदांध गंध से, सकल चराचर बँहक रहे।
उल्लासित वातावरण, चाह ये न होवे अंत।
सजा रहे घर द्वार, शुभ आगमन है कंत।