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kaushik mehta

Abstract

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kaushik mehta

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सूटकेस माँ बन गई।।

सूटकेस माँ बन गई।।

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सूटकेस

सूटकेस का पूरा अर्थ बदल गया है।


सूटकेस में थोड़े पैसे

थोड़े गहने

माँ इस में जीवन की

पूँजी रखती थी।


सूटकेस में

टूटे फूटे खिलौने

पुराने चश्मे और पेन

कुछ पत्र , कुछ नोटबुक

सूटकेस में पुरानी

यादें भरी जाती थीं।


सूटकेस में माँ रखती था

मिठाइए का डब्बा

और पत्नी गड़ी कर के

रखती है कपड़ा

शेविंग किट और

ऐसा ही कुछ रखा जाता है।


घूमने के लिए जाना होता

तब कम पड़ जाती है

और

विदेश जाए तो उस का वजन

बढ़ न जाए उस का

ख्याल रखना पड़ता है।


भरी हुई हो या खाली

सूटकेस भेट सौगाद की

चीज है

और उस से कई काम

हो जाते है।


लेकिन

पत्नी नाराज हो के अपने कपड़े

सूटकेस में रखने लगे और

मायके जाने की जिद करे तो

घर का मैनेजमेंट

बिखर जाता है।


साधन से भरी हुई

सूटकेस कईयों के लिए

रोजगार बन जाती है

तो कई लोग उस में

राज़ छुपाके रखते हैं।


लेकिन

पहलीबार देखा की

सूटकेस

माँ की गोद बन गई

एक नन्हे से बालक को

लिये वो सवारी बन गई।


एक बालक का बोज

लेके वो रास्ते पर

चुचाप चलती जाती है।


मालूम पड़ा की

बेजान चीज भी

संवेदनशील हो शक्ति है।


हम तो सूटकेस भी

न बन पाए

कैसे बनते ?

हम तो मानवी है

हम सब सरकार है

हम तो शासक है

हम सब संस्था ऐ है

हम शेठ शाहूकार है

हम हिन्दू है

हम मुसलमान है

हम सूटकेस थोड़े है

सूटकेस तो हमारे लिये है।


सूटकेस का करे क्या मोल

कहते है की

माँ की भूमिका कोई

अदा नहीं कर शकता

लेकिन सूटकेस ने की

सूटकेस माँ बन गई।





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