बारिश , आ नीचे आजा
बारिश , आ नीचे आजा
बारिश, आ नीचे आज
क्या आकाश की अटारी
पे जा के बैठा है?
तू क्या कोई भगवान है
या फिर संत, या तो
कोई बड़ा आदमी?
तेरा नाता है धरती से
धरती से बिना मिलन
तू आधा अधूरा है और
तू नीचे आता है तो
खुश तो हम भी होते हैं
ऊपर बैठने का कोई
फायदा नही, वहाँ आदमी
अकेला पड़ जाता है
पूछ ले भगवान से , संत
फकीर, योगी से।
वहां सब खाली खाली है
तू तो भरपूर है
धरती पे आ , ख़ालिपिली
भाव क्यों खाता है?
खाली हो जाना अच्छा होता है
मन हल्का हो जाता है
सब वो नही कर शकते
तू भाग्यवान है
भाग्यवान बरस जा
आजा , तेरी राह है
तेरी चाह है, आ साथ में
बैठेंगे, माटी की भीनी खुशबू
श्वास में भर लेंगे, कागज़ की नाव
तेरे पानी में तैरायेंगे
खेत खलिहान, किसान
सब राह देख रहे है
जमीन में बीज हमने
बो दिया है, उस को
अंकुरित होते देखना है
जिस की आंखों में
भिनापन हो वी ही
धरती पे हरापन ला
सकता है , तू ही वो
कर सकता है
आ अब देर न कर,
ऊपर देर होती होगी
अंधेर न कर
आजा तेरे साथ दो
बाते करनी है
आजा मन की
बात करेंगे
भजिये खाएंगे
अदरक वाली चाय पियेंगे
जिंदगी का लुत्फ उठाएंगे
और क्या !