सूरज से भारी मंगल
सूरज से भारी मंगल
वाह रे जहान मेरा
हर हँँसी पर एक अमंगल
देखो तो वाह रे भाई
सूरज पर भारी होता मंगल।।
बेशर्मी की लांघते सीमा
कहता झुकता आता
कही बात समझ में आया
ऐसा दर्शा कह जाता
पर रंंग बदलता ऐसा मानो
जैसे खरीद कुछ लाया
कर बैैैठा फिर तो दंगल,
देखो तो वाह रे भाई
सूरज पर भारी होता मंगल।।
वह मंंगल है मंगल ही रहे
न बने तने किसी सूरत में,
वह सूूरज है सूरज ही रहा
तनकर झुलस बस रह जाओगे
यह आग होगी दावानल की
जला दोगे पूरा सजीला जंगल,
देखो तो वाह रे भाई
सूरज पर भारी होता मंगल।।
