सुनते हैं
सुनते हैं
किस की सुनते है ?
दूसरो की या अपनी
लेकिन सच ?
सिक्के के इस
पहलू -सा नहीं है
जबकि !
सुन कर हम समझ
ही नहीं पाते कि,
आखिर, हम किस
की सुनते है ?
किस की
न तो दिल की,
आवाज़ उठा पाते है
न ही,
सही विचार को,
सत्यता से,
आत्मसात कर पाते है
हम किस से,
डरते है ?
जो कुछ नहीं सुन पाते हैं
सच तो यह है कि हम,
बस भेड़ -चाल ही सुन पाते हैं
चाहे इस भेड़ -चाल की,
कोई सोच नहीं होती
फिर भी हमारा समाज,
पीटता है लकीरें
चाहे कोई बात नहीं होती
दुनिया क्या कहेगी ?
बस एक प्रश्न चिन्ह -सी बात है होती
क्या चलन है, दुनिया का
जीवन से लेकर मृत्यु तक
अपनी आवाज़ को दबा कर,
बस एक भेड़ -चाल होती
जीवन के तमाम बखेड़ों तक,
सही राह दिखाने की,
कोई बात नही होती
बस दुनिया क्या कहेगी ?
क्या कहेगी ?
न दूसरों की न अपनी
बस एक ही बात सुनती।