सुनो सावन
सुनो सावन
सुनो सावन...
इस बरस तुम बरसो
लेकर ऐसे घन...
धुल जाए धरती पर छाई
काली उदासी!
गूंज उठे सरगम...
तेरी रिमझिम बरसती
बूंदों की छम छम से..
बहक उठे
सहमा सा हर मन!
सुनो सावन...
तुम यूं करो ना
बहा ले जाओ कहीं
अपनी बारिश की
फुहारों संग...
बैरी अदृश्य तपन ..
झुलसा रखा है जिसने
सबका जीवन!
सुनो सावन..
फिर खेलेंगी
तुझ संग अठखेलियां..
मासूम दिलों की धड़कन
चूम चूम बूंदों को तेरी
करेंगी शत् शत् नमन
सुनो सावन..
मायूस सा है
बच्चों का भोला मन
लौट आएगा
उनमें वही शरारती उद्धम
गर हो सके
तेज अपनी
धारों संग
कर दो
दुष्ट दमन।
