सुकून
सुकून


यूं तो हैं कई लोग, यार ज़माने में,
पर है एक अलग सुकूं, तूझे गले लगाने में,
तू रूठ भी जाए तो, नहीं कोई गिला तुझ से,
मिलता है सुकूं मुझे, तुझे यार मानने में,
जब भी हो मेरी चाह, मुझे यार बुला लेना,
लगता है कितना वक्त, तेरे घर को आने में,
लगती हैं कुछ घड़ियां, रटने में उसको,
लग जाती हैं सदियां, जिसे यार भूलाने में,
क्या खूब खेलते हो, आदर्श खेल फरेबों का,
नहीं करते कोइ कसर, तुम दर्द छुपाने में।