सत्य सिर्फ यही है
सत्य सिर्फ यही है
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मैंने पाया
आकांक्षाओं के
अरण्य में
मंद मंद बहती
बयार
उम्मीदों की,
समय आकाश में
उद्घाटित होते
सत्य रूपी सूर्य की
तीव्रता को
महसूस नहीं होने देती ।
मारीच केली उपरांत
मन के द्वार की
वेदना फिर
प्रवेश कर जाती है
सांझ की
कोख में,
धीरे से जन्म लेती है
विषैली हताशा
निराश के तम में
डसने को
जीवन।
इस तम को
हारना होगा
वेदना को
हराना होगा
उषा की प्रतीक्षा में
स्वयं को
जगना होगा
कोशिशों को
जगाना होगा
क्योंकि
युगों युगों से
सत्य सिर्फ यही है,
सूर्य ने हर हाल
निकलना ही है।