स्त्री कुशल अदाकारा है
स्त्री कुशल अदाकारा है
स्त्री कुशल अदाकारा है,
बखूबी अपना पात्र
जी जान से निभाया करती है।
अभिनेत्री है पूरी,
रग-रग में अभिनय समाया है,
स्त्री ताउम्र नाटक करती है !
मन होने पर भी
ना भाने का दिखावा करती है,
अपनी वस्तु, इच्छा और चाह का
यह कहकर परित्याग करती है
कि मन नहीं है या पसंद नहीं,
तब अभिनय देखने लायक होता है।
सच में स्त्री नाटक ही तो करती है !
खाना कम होने पर
खुद पेट भरने का बहाना करती है
परिवार को प्यार से खिलाया करती है।
दिल उदास जब जार-जार रोता है,
पर घरवालों व बच्चों की खुशी के लिए
होठों पर मुस्कान सजा कर रखती है।
स्त्री जीवन के रंगमंच पर
अभिनय बेमिसाल करती है।