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Anu Yadav

Abstract

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Anu Yadav

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स्तिथप्रज्ञ

स्तिथप्रज्ञ

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ना किसी के तारीफ से,

ना किसी के फटकार से,

मैं अपने आप को ढालू

किसी भी आकार में।

ना मैं समझूँ ना मैं सुनूं,

ऐसी बातें समाज के।

मैं बस चलना जानू,

बेफिकर और आज़ाद होके।

लोगों के वचन से,

ना मैं बुरा मानती हूँ

और ना खुश होती हूँ

क्योंकि मैं तो स्तिथप्रज्ञ बनना चाहती हूँ।

ना विजय से सुखी,

और न ही पराजय से दुखी,

में तो स्तिथप्रज्ञ बनना चाहूँ।

आज़ाद हुई मैं इन मनुष्य के वाणी के प्रभाव से।

अब बस मंजिल एक हैं,

की उड़ना चाहूं आकाश में।

आखिर स्थिथप्रज्ञ बनना चाहती हूँ मैं।


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