मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?
एक पीपल की पेड़ की तरह महसूस करता हूं,
किसी के लिए पूजनीय और किसी के लिए डरावना हूं।
चांद जैसा महसूस करता हूं,
किसी के लिए बहुत अच्छा पर
किसी के लिए सिर्फ दागो से भरा हुआ।
मैं तो न जानू की मैं कोन हूं,
किसी के लिए उनका चोट और किसी के लिए मरहम हूं।
कैसे पेहचानु खुद को?
की मैं कोन हूं,
नहीं किया जा सकता किसी के शब्दों पर विश्वास
क्योंकि मैं न जानू की मैं क्या से क्या बन जाऊ।
किसके लिए अंधकार हूं और किसके लिए सवेरा हूं,
ये तो मैं ना जानू,
क्योंकि मैं एक इंसान हूं।
किसके लिए खास हूं और किसका इस्तेमाल का सामान हूं,
ये तो मैं ना जानू क्योंकि मैं ये जानने मैं नाकाम हूं।
बस एक चीज जीवन में करना सीखा मैंने,
वो था साथ देना।
पर ताजुक की बात हैं,
की मैं अब ये भी न जानू की कोन देगा साथ और कोन छोड़ जायेगा।
कौन कब था अपना और कब कोन बन जाए पराया।
