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Nimisha Singhal

Abstract

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Nimisha Singhal

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सृजन और विनाश

सृजन और विनाश

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आदि शक्ति ने किया

हम सब का सृजन,

हम विध्वंस की ओर

क्यों मुड़ते गए ?


हरी-भरी सुंदर थी वसुंधरा,

उसे राख के ढेर में बदलते गए।


धरती ने दिया बहुत कुछ था हमें,

हम पाते गए नष्ट करते गए।

इस स्वस्थ सुंदर धरा को हम,

क्षतिग्रस्त, रोग ग्रस्त करते गए।


खाद्य पदार्थ परिपूर्ण थे यहां,

लालसा दिन-रात बढ़ाते रहे।

हरे-भरे दरख़्तों को काटा गया,

धरती को बंजर करते रहे।


फिर रोक ना पाए उस सैलाब को हम,

जो बाढ़ के रूप में कहर ढाता गया।

प्रहरी तो हमने ही काटे थे,

सैलाब को खुद ही रास्ता दिया।


अपने ही स्वार्थ के हाथों रचा,

अपना ही बर्बादे दास्तां यहां।

चारों तरफ मौत का मंजर यहां,

मौत बाहें फैलाए खड़ी हर जगह।


महामारी, बीमारी हर

तरफ फैल रही,

प्रकृति दे रही वापस

जो तुमने दिया यहां।


विश्व ज्वालामुखी की कगार पर है खड़ा,

इंसान अभी भी जाग जाओ जरा।


अधिक से अधिक वृक्ष लगाओ,

कम से कम अपने

फेफड़ों को तो बचाओ।


धरती की आह तो नहीं सुनते

पर खुद की जान की खैर मनाओ

पेड़ लगाओ प्रदूषण भगाओ।


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