सपनों का भारत
सपनों का भारत
सावरकर भारत वो नहीं बना
जिसके लिए सब छोड़ गए
भारत वो बन गया आज
जिसमें संस्कार सब धूल हुए
पहचान हमारी भाषा थी
भूल गए हम उसको भी
ज्ञान हमारे वेद हुए थे
भूल गए हम उनको भी
सपनों का भारत हमनें
सोचा नहीं बनाने का
कोशिश की जिन्होने
छोड़ दिया तन्हा यहाँ
भूल गए हर वो शहादत
जिसने हमें उठाया था
भारत का ज्ञान अब क्षीण हुआ
ऐसा भारत बनाया है
शिक्षित तो हुए हैं हम
पर मन मैला भी हो चुका
विवेकानंद के सपनों का
हमनें सत्यानाश किया
भगतसिंह ने जो सोचा था
भारत वो कभी बना नहीं
समानता का बीज यहाँ
कभी दिलों में उगा नहीं
जिससे सम पहचाने जाते
भूल गए वो संस्कृति भी
हम विश्वगुरु थे पहले
आज बनेंगे पता नहीं
आजाद हुए जिस्मों से हम
मानसिक गुलामी आज भी है
मातृभाषा और मातृभूमि पर
लज्जा आती आज भी है
अंग्रेजियत से जकड़े हैं
हर विचार यहाँ लोगों के
यही मोल लगाया सब ने
आजादी में कुर्बानी का
अधूरी मिली है आजादी
हो रही रोज ही बर्बादी
एक भाषा पहचान बने
हिन्दी से हिन्दुस्तान बने
सबका हो सम्मान यहाँ
विश्वगुरु की पहचान बने
तभी मिलेगी आजादी
जब संस्कृति अपनी शान बने।