सफलता के दरवाजे
सफलता के दरवाजे
भले कपाट ना खुले सूर्य के
दिखे तेरी परछाई ना
घोर निशा के भयंकर तम की
टूटेगी अंगड़ाई ना
आतुर होगा जब आलस्य
संकल्पों का वध करने को
निद्रा का भी जाल विकट हो
तुझ को काबू करने को
लेकिन तुझको चलना होगा
दोषों छल करना होगा
रणनीति की बांध के मुट्ठी
चल फिर आज निकलते है
संघर्षों के दरिया में
उन्नत की नाव पकड़ते हैं
बंधी आएगी साथ सफलता
निश्चय को जरा और जकड़
चकाचौंध से भ्रमित ना हो तू
लक्ष्य के जरा पीछे पड़।