संकल्प
संकल्प
अधिकार मिले हमको इतने
अब कर्तव्यों की बारी है,
जिस समाज से सदा लिया
उसे अब देने की बारी है।
समाज सुधार की पहल में
मृदु हृदय का यह पड़ाव,
दशों दिशाएँ देखता
दिखता बस व्यापक तनाव।
अभाव से, दुराव से,
विकल समाज जूझता,
लोभ की फ़िराक में
हक़ सभी के लूटता।
अश्रुधार बह रही
डबडबाई कालिमा,
लिए नयन वो बोलता
मैं तेरी राह जोहता ...
मैं तेरी राह जोहता .....
तो साथियों ! उधर चलें,
ज्ञान के प्रभाव से,
निवारणों से
कारणों के दमन का
आज इक विकल्प लें,
योगदान से
समाज के सुधार का
नेक इक संकल्प लें।
नेक इक संकल्प लें।|
