Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Karishma Gupta

Abstract

4  

Karishma Gupta

Abstract

संग से बनाम तक का सफर

संग से बनाम तक का सफर

1 min
482


क्षण भर में बदल जाता है जीवन इस कदर

यूं ही नहीं आसान संग से बनाम तक का सफर


चल पड़ती हैं वो अजनबी दिशा में लेकर सपने हजार

साथ सफर में होता केवल निश्चल प्रेम और विश्वास


कायम रहे सफर हमेशा क्यों भोज उसी पर डाला है

क्या थोड़ा दायित्व उसका नहीं जो साथ चलने वाला है


यूं तो सफर की कई पीड़ा सहना राह बड़ी आसानी है

केसे सहे पीड़ा प्रिय की जो कष्ट धूर्तता और बेईमानी है


पग में रहना सब कुछ सहना सब कुछ सहना 

चलते जाना सामाजिक रीत पुरानी है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract