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Minaz Khan

Tragedy Others

5.0  

Minaz Khan

Tragedy Others

समुद्र के किनारे जल गया

समुद्र के किनारे जल गया

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समुद्र के किनारे क्यों जल गया

आशियाना मेरा।

जो था ही नहीं कभी मौजूद

वो गुम हो गया सामान मेरा।


कभी चलूँ तो लड़खड़ा के गिरूँ

जो संभलूँ तो, इतरा के उठूँ,

रास्तों कि हुई साज़िश ये कैसी

जो भटकाता रहा, मंज़िलों से पता मेरा।


हर सुबह चाहूँ ख़ुशियाँ तलाश ले मुझे

हर रात ग़म को सोचते कटे,

धरती के इन गोल चक्करों ने

छीन लिया दिन और रात में तमीज़ मेरा।


कभी देखूँ खुद को तो लगे एक उम्र पड़ी है

कभी सोचूँ तो लगे उम्र दराज हूं मैं

ज़िन्दगी कि इस तेज़ रफ्तार ने 

भुला दिया उम्र असल मेरा।



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