कभी चलूँ तो लड़खड़ा के गिरूँ जो संभलूँ तो, इतरा के उठूँ, रास्तों कि हुई साज़िश ये कैसी जो ... कभी चलूँ तो लड़खड़ा के गिरूँ जो संभलूँ तो, इतरा के उठूँ, रास्तों कि हुई स...
सच को तमीज ही नहीं बात करनेे की, झूठ को देखो कितना शोर मचाता है, सच को तमीज ही नहीं बात करनेे की, झूठ को देखो कितना शोर मचाता है,