समाएगी ना ?
समाएगी ना ?
तुम्हारी और हमारी बनाई हुई उन सारी यादों को आज मैंने उस सीलन से भरी हुई दीवार पर टांग कर देखा,
ना जाने,
ना जाने, क्यूं आज इस कमरे में इक अलग ही भीनी भीनी खुशबू सी आ रही है,
जो ना चाह कर,
जो ना चाह कर भी मुझे तेरे साथ बिताए हुए उन पलों की यादें दिला रही है,
अब से वो सारी यादें सिर्फ मुझे ही नहीं , अब से इस कमरे की हर दीवार को अपना बनाएंगी,
अब इनमें तेरी खुशबु भी समा जाएगी, "समाएगी ना ?