स्कूल बैग
स्कूल बैग
देखो आज बच्चों के बस्ते कितने भारी हैं,
लादना पड़ता पीठ पर कितने ये भारी हैं।
देख लो सब कितना बड़ा हो रहा ये अन्याय है,
मासूम बच्चे पिस रहे भार तले कहाँ हो रहा है न्याय है।
सच में कभी-कभी तो कंधे तक छील जाते हैं,
होता कभी दर्द इतना ये नन्हे सह नही पाते हैं।
बिल्कुल हिम्मत ये हार जाते,
पर बेबस है कुछ कर नहीं पाते।
चलो चल कर किसी दिन समझाएंगे
ये झूठी तसल्ली ही देते अभिभावक बेचारे।
बस अब तो कुछ ठोस काम करना पड़ेगा,
बस्तों का बोझ कम तभी होगा।
बदलनी पड़ेगी शिक्षा की ये कठिन नीति सारी,
जो पड़ रही है हमारे नन्हे-नन्हे बच्चो पर भारी।
