सियासती गाँधीवाद
सियासती गाँधीवाद


एक नेता जी पहुँचे २ अक्टूबर पर,
गांधी जी की प्रतिमा का अनावरण।
क़दम ये भले ही था सियासी मगर,
बदन पे चढ़ा था खादी का आवरण।
आवरण जैसे ही प्रतिमा से था हटाया,
ज्यूँ शुरू किया उन्होनें अपना भाषण।
"बापू बड़े ही अनुशासित थे", बताया,
बात सुनकर जयकार उठे चमचे-गण।
नेता जी बोले:"बापू। अहिंसा के पुजारी,
न कर्म से न वचन से हिंसा उन्होंने की।"
बीच में ताली पर नेता जी दे दीनी गारी,
शुरू की भगिनी से ख़त्म फिर माँ पे की।
नेता जी ने बताया कि बापू सत्यवादी थे,
हरेक परिस्थिति में करते थे सत्य-वाचन।
परन्तु हमारे नेता पूरे ही अवसरवादी थे,
खड़े हो जनता-समक्ष करते मिथ्याभाषण।
"अहिंसा परमोधर्मः" क
ा दे कर के नारा,
लवाज़मे संग नेता जी मंच से उतर गए।
ताली बजानेवाले को देकर गाली दुबारा,
खाने में नेता जी पूरा एक बकरा चर गए।
पंचवर्षीय योजना के तहत सजता है मंच,
नेता जी यूँ आकर के दे जाते हैं आश्वासन।
हर भाषण में देखो तो दिख जाता है प्रपंच,
लोग गंभीरता से शब्दशः, ले जाते भाषण।
हर साल यूँ ही बापू के बूत सजाये जाएंगे,
हर साल नयी प्रतिमा का होगा अनावरण।
भूखे लोग वो चंद सिक्कों में बुलाये जाएंगे,
वोटों की कमी का किया गया यूँ निवारण।
गाँधी जी के स्वप्न का भारत कहीं खो गया है,
जन-मानस को झूठे नेता लगते अब सच्चे हैं।
गनीमत बापू का तन चिर-निद्रा में सो गया है,
बापू इस युग में तो आप फोटो में ही अच्छे हैं।