मैं और कविता
मैं और कविता
बड़ा भयानक वो दौर था
उग्रवाद का पुरजोर था
पूरा पंजाब झुलस रहा था
देश समूचा तड़प रहा था
कोमल ह्रदय यह सह न पाया
दर्द उभर कर सामने आया
तब मैंने वो पहली कविता लिखी थी
जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी
कलम और शब्दों का साथ हुआ
नए सफर का आगाज़ हुआ
ज्यादा खुशी मुझे तब मिली
जब मेरी कविता अखबार में छपी
छोटी थी न समझ न पाई
शायद, पापा ने थी वो छपवाई
कविता से मेरी इतनी पटती थी
वो मुझ में, मैं उसमे बसती थी
फिर वो मुझसे रूठ गई
शायद मैं ही उसको भूल गई
वो भी सिसकी, मैं भी तड़पी
गमगीन वो भी, मजबूर मैं भी
दूर रहकर भी पास वो थी
मैंने पुकारा साथ वो थी
अब चल पड़े हैं, फिर संग-साथ
एक नए सफर की करने शुरूआत।