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Kiran Bala

Abstract

5.0  

Kiran Bala

Abstract

मैं और कविता

मैं और कविता

1 min
509


बड़ा भयानक वो दौर था

उग्रवाद का पुरजोर था

पूरा पंजाब झुलस रहा था

देश समूचा तड़प रहा था


कोमल ह्रदय यह सह न पाया

दर्द उभर कर सामने आया

तब मैंने वो पहली कविता लिखी थी

जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी


कलम और शब्दों का साथ हुआ

नए सफर का आगाज़ हुआ

ज्यादा खुशी मुझे तब मिली

जब मेरी कविता अखबार में छपी


छोटी थी न समझ न पाई

शायद, पापा ने थी वो छपवाई

कविता से मेरी इतनी पटती थी

वो मुझ में, मैं उसमे बसती थी


फिर वो मुझसे रूठ गई

शायद मैं ही उसको भूल गई

वो भी सिसकी, मैं भी तड़पी

गमगीन वो भी, मजबूर मैं भी


दूर रहकर भी पास वो थी

मैंने पुकारा साथ वो थी

अब चल पड़े हैं, फिर संग-साथ

एक नए सफर की करने शुरूआत।


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