सिर ठंडा
सिर ठंडा
ठहरो ! सिर को अपने ठंडा रखो
दूर बदन के अपने ही डंडा रखो
क्यों पाला करते बुढ़ापे की सनक
रखो बच्चों सी मनहर चहक।
बोलो कि कलियाँ खिल उठे
हंसो तो दिल अपने मिल उठे
क्यों पालते आग सी दहक
जब चाहिए फूलों की महक।
अब तो संभल ही जाओ
आओ साथ हँस कर गाओ
मिलेगा ही एक दिन सड़क
रखो सब पाने की ललक।
