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Vivek Agarwal

Inspirational

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Vivek Agarwal

Inspirational

सिल्वर जुबली

सिल्वर जुबली

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दोस्तों की महफिल सजी है, मौका भी है बहुत ख़ास। 

२५ साल पहले हम सब, इसी कॉलेज से हुए थे पास। 


सिकुड़ती हेयरलाइन वाले ये चेहरे, गीत जोशीले गाते हैं।

और फैलती वेस्टलाइन को सम्हाले, जोर का भंगड़ा पाते हैं। 


आज बैठे हैं फिर सब मिल के, जाम से जाम टकराता है। 

खुश तो हूँ मैं भी बहुत मगर, रह रह कर वो याद आता है।


हॉस्टल में था रूममेट वो, यार भी और हमराज भी। 

उसके बिना महफ़िल अधूरी, लगती मुझको आज भी। 


ऐसा नहीं की दोस्त को मेरे, प्यारे नहीं उसके ये यार।

पर फौजी है वो मित्र मेरा, देश से करता ज्यादा प्यार। 


यह कविता मेरे रूम मेट और प्रिय मित्र ग्रुप कैप्टेन कमठान को समर्पित

जो हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज के सिल्वर जुबली समारोह में सम्मिलित न हो पाया

क्यूंकि वो एक मिशन पर था।


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