शून्य
शून्य
शून्य काल सत खण्ड खण्ड,
विध्वंश नया देखा प्रचंड।
है शून्य ऊपज, शून्य मे अन्त,
यह विषाद का प्रलय अनंत।
जब शून्य, शून्य मे हो निहित,
गर्भित, कंपित शून्य के सहित,
जहाँ, वशुंधरा की क्षुधा शून्य हो,
मानवता से, धरा शून्य हो।
शून्य काल सत खण्ड खण्ड,
विध्वंश नया देखा प्रचंड।
है शून्य ऊपज, शून्य मे अन्त,
यह विषाद का प्रलय अनंत।
जब शून्य, शून्य मे हो निहित,
गर्भित, कंपित शून्य के सहित,
जहाँ, वशुंधरा की क्षुधा शून्य हो,
मानवता से, धरा शून्य हो।