खुशियाँ ...
खुशियाँ ...
आज खुशियाँ वापस आयी है....
बचपन ने, बूढ़े होंठो पर मुस्कुराहट सजाई है।
उस सन्नाटे ने आज, बुढ़ापे को हँसते देखा,
घुठानो के बल रेंगते और मचलते देखा।
शरीर के सारे दर्द आज शांत बैठे थे,
परहेज के सारे सूत्र, आज व्यंजन को ऐंठे थे।
ये सारी खुशियाँ मुझे अब भी वैसी ही नजर आती है,
पहले दो दिन ठहरती तो थी,
अब दो क्षण मे चली जाती है........