क्या कहीं कलम ही गूंगों का है ?
क्या कहीं कलम ही गूंगों का है ?
मूक शब्दों का प्रवाह..
शब्दों मे है मात्र आह..!
मैं हृदय से पीड़ पूछने चली हूँ देख तो...
अस्त्र - शस्त्र हाँथ ले लड़ने चली हूँ, देख तो...
स्तब्ध भावों को हर बार यूँ कुरेदती....
आह के प्रवाह को किस ओर दूँ मैं अनुमति..?
मैं दिन रात क्या लिखूँ...
लिखना थोड़ा कठिन सा है।
क्या भाव की कमियाँ कहीं..!!
या कहीं कलम ही गूंगों का है।