शुक्रिया
शुक्रिया
आज मैंने सागर से बात की
डराना चाह रहा था वो मुझे
शोर कर रहा था,,चिल्ला रहा था
कि जा चले जा ,, पर मै अड़ गया था
कि डरूंगा नहीं ,, जाऊंगा नहीं
बस आज
मै भी चाहता था देखना कि वो क्या
बता रहा है.…
चिन्हाड़ा वो जोर से,
मै भी डट गया पूरे जोर से ,
डराने आ रहा था वो सामने से ,
मै था अकेला अपनी ओर से।
मै डटा रहा वो कोशिश करता रहा।
अंत में वो बोला
क्या हुआ है तुझे ,
क्या चाहता है मुझसे
मैंने कहा.……
बस तुझसा दीवानापन चाहता हूँ
तुझसा गरजना चाहता हूँ ,,, तुझसा जीना चाहता हूँ और तुझसा ही
मरना चाहता हूँ
तू है जैसा वैसा बहना चाहता हूँ !!!!
फिर भी उसने पूछा कि क्यूं जानना चाहता हूं
मैंने कहा मै तुझ जैसा ही खुद में खो जाना चाहता हूं
वो शायद समझ गया था मुझे
और अब समझा रहा था मुझे ,
कि रखता नहीं मैं कुछ अन्दर
जो जैसा देता है वैसा ही लौटा देता हूं
कुछ अपना कर
और
कुछ बहा कर
कहा उसने मुझसे
तू भी वही अपना जो तू समां सके भीतर
और बहा दे बाकी अपने से बाहर
फिर तू मेरी तरह ही बहेगा और मुझसा ही जीवन जियेगा।
शायद बात उसकी सही थी
शायद मैं ही नहीं समझा था
कि भर जाता हूँ मै अन्दर
नहीं कर पता कुछ बाहर ,
शायद मुझे भी जीना होगा समंदर की तरह
शायद मुश्किल नहीं है जैसे को तैसा होना
शायद मुश्किल नहीं है सब कुछ लौटा देना
शायद मुश्किल नहीं है उसकी तरह जीना
और
जब हर शायद का जवाब है तो
क्यूँ ना जवाब देकर देखा जाये
यही सोचकर किया उसे
अलविदा और कहा शुक्रिया।