शिकायतें
शिकायतें
शिकायतें तो हर किसी को
किसी न किसी से होती है
कोई कहता है
कोई नहीं कहता है
ये सोचकर
कि कहीं बुरा न लग जाये
और कभी मुझे कोई
काम पड़े
तो मेरा काम अटका
न रह जाये
फिर भी दिल में
बहुत कुछ चलता रहता है
लगने लगता है
कि कहीं दिमाग फट न जाये
जब न निगला जाये
न उगला जाये
तब लिखना
दवा बन जाता है
जिसे हम कई दफ़ा
लोगों को कहने में
नाकामयाब होते है
उसे लिखकर मन हल्का
करते है
वो लिखा हुआ
उन तक
कभी नहीं पहुँचाते
बस अपने आपको
अपने मन को समझते हैं।