शीर्षक- शुभ कर्मो का संचयन
शीर्षक- शुभ कर्मो का संचयन
गिरते संभलते कदमों को कैसे संभाला जाए तेरे बिन
कर्मों की गठरी सिर पर लेकर स्वांस भागता जाए।
आवागमन की चक्की चलती युग युग पीसते जाए।
मानव आया करने क्या तू, माया रंग जब चढ़ा गहरा
ईश्वर ही भूला जाए क्यों प्राणी पल पल पाप कमाये।
माया, लोभ, ईष्या परम शत्रु काहे मन भरमाये।
आया खाली हाथ रे मानव , साथ भी कुछ न जाए।
स्वांसो का ताना बाना लेखा कर कर्मों का अपने।
बस शुभ-अशुभ कर्मों की गठरी भरता जाए।
कुछ घटता कुछ बढ़ता लेकिन स्वांस ही घटता जाए।
कर लो नेक कमाई, मिट्टी के तन से.....
हाड-मास का पुतला शरीर....पंचतत्व के मेल से
कर लो नेक कमाई, परोपकारी बन शांति का अनुभव पाये।
