शीर्षक:जीवनगति
शीर्षक:जीवनगति
उन्मुक्त सी हो चलने की
जीवन की चाह आगे बढ़ने को….
जीवन गति की व्यवहारिकता से उन्मुक्त
क्या कभी पहचान होगी जीवन की
आहुति जरूरी है क्या जीवन की वास्तविकता को
या अनवरत यात्रा जीवन डगर पर चलने की
उन्मुक्त सी हो चलने की
जीवन की चाह आगे बढ़ने को….
अनंत दुखो को सहकर जीवन पथ पर
अग्रसर होते हुए करना है सफर तय
कब तक सुप्त होंगी जीवन की लालसा
कब होगा नव जीवन का उदय नवसंचार
उन्मुक्त सी हो चलने की
जीवन की चाह आगे बढ़ने को….
समेट लेती है स्वयं को जीवन गति की चाल में
सीमित सार्थकता जीवन समय निर्धारित हैं
जीवन कालजयी नहीं समय की अधूरी सी दास्तान
परिवर्तित होते समय के साथ जीवन संघर्ष
उन्मुक्त सी हो चलने की
जीवन की चाह आगे बढ़ने को….
बेरंग सी जीवन गति की चाल बस रुक सी रही हैं
न जाने कब विलुप्त हो जाये शरीर दाह
मोहक लगने वाला जीवन पथ क्या आसान था..?
मिथ्या मायाजाल में फंसा जीवन कब ही जाए अंत
उन्मुक्त सी हो चलने की
जीवन की चाह आगे बढ़ने को….