STORYMIRROR

AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

4  

AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

शांति की आवाज

शांति की आवाज

1 min
250

किसी मनोहर बाग में एक दिन,

किसी मनोहर भिक्षुक गाँव,

लिए हाथ में पुष्प मनोहर,

बुद्ध आ बैठे पीपल छाँव।


सभा शांत थी, बाग़ शांत था,

चिड़ियाँ गीत सुनाती थीं।

भौरें रुन झुन नृत्य दिखाते,

और कलियाँ मुस्काती थी।


बुद्ध की वाणी को सुनने को,

सारे तत्पर भिक्षुक थे,

हवा शांत थी,वृक्ष शांत सब,

इस अवसर को उत्सुक थे।


उत्सुक थे सारे वचनों को,

जब बुद्ध मुख से बोलेंगे,

बंद पड़े जो मानस पट है,

बुद्ध वचनों से खोलेंगे।


समय धार बहती जाती थी,

बुद्ध कुछ भी न कहते थे,

मन में क्षोभ विकट था अतिशय,

सब भिक्षुक जन सहते थे।


इधर दिवस बिता जाता था,

बुद्ध बैठे थे ठाने मौन,

ये कैसी लीला स्वामी की,

बुद्ध से आखिर पूछे कौन ?


काया सबकी बाग में स्थित,

पर मन दौड़ लगाता था,

भय,चिंता के श्यामल बादल,

खींच खींच के लाता था।


तभी अचानक जोर से सबने,

हँसने की आवाज सुनी,

अरे अकारण हँसता है क्यूँ,

ओ महाकश्यप, महा गुणी।


गौतम ने हँसते नयनों से,

महाकश्यप को दान किया,

कुटिया में जाने से पहले, 

वो निज पुष्प प्रदान किया।


पर उसको न चिंता थी न,

हँसने को अवकाश दिया,

विस्मित थे सारे भिक्षुक क्या,

गौतम ने प्रकाश दिया।


तुम्हीं बताओ महागुणी ये, 

कैसा गूढ़ विज्ञान है ?

क्या तुम भी उपलब्ध ज्ञान को, 

हो गए हो ये प्रमाण है ?


कहा ठहाके मार मार के, 

महाकश्यप गुणी सागर ने,

परम तत्व को कहके गौतम,

डाले कैसे मन गागर में ?


शांति की आवाज सुन सको, 

तब तुम भी सब डोलोगे,

बुद्ध तुममें भी बहना चाहे, 

तुम मन पट कब खोलोगे ?  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract