सड़क जो दूर तक जाती है
सड़क जो दूर तक जाती है
सुबह सवेरे
सड़कों पर वाहनों
की भागमभाग
उनसे निकलता
काला धुआं
जो घुल घुल कर
जाता है सांसो में,
कुछ बच्चों की
स्कूल को दौड़
कुछ चहकते
कुछ सिसकते
बस्ते का बोझ
साथियों का रौब
कुछ बच्चों के
माता-पिता का
कार से छोड़कर जाना
जाते-जाते
हिदायतों का ताना-बाना।
सड़क पर दूर-दूर तक
बिखरे दिख रहे
प्लास्टिक के टुकड़े
और अन्य बेकार सामान
कुछ छोटे-छोटे बच्चे
इन टुकड़ों को इकट्ठा कर
अपने बड़े से थैले में भरते
और घसीट कर ले जाते हुए
उनके मैले और गंदे शरीर
जिनमें मक्खियां भिनभिनातीं
दुर्गंध भरे हाथ
पैर चप्पलों के बगैर।
कुछ टांट और बोरे
बेतरतीब बिछे
सड़कों पर
उन पर पसरे
कुछ लोग
बेखबर इन रात दिन
चलने वाले वाहनों से
बेखौफ इस बात से
कि कोई रौंद न जाए उन्हें
जल्दीबाज़ी में,
फलों से लदे ठेले को
आगे की ओर
ठेलता एक बुजुर्ग
जो कभी-कभी
उसी के वेग से
वापस पीछे आ रहा था।
ये सड़कें
गुलज़ार रहती है
रात दिन
इन लोगों की भीड़ से
नहीं समझतीं
अंतर अमीरी गरीबी में
सबको चलने का
बराबर हक देती हैं,
ये सड़कें
जो दूर तक जाती हैं साथ
हमसफर बन के
मगर एहसास करा देती हैं
पल भर में ही
जीवन की विविधता का।