राम तुम आ जाओ
राम तुम आ जाओ
है दीये तले अंधेरा, दीप-दीप को रहा नकार
मंद पड़ गयीं स्वरध्वनियां, क्षीण हो गयीं करुणपुकार।
आओ सब मिलकर ऐसी दीवाली मनाए इस बार
जोत से जोत मन की जगाकर, मिटा दें जग का अंधकार ।
सदियों पुरानी परंपरा, सुंदर यह अपना त्यौहार
वर्षों पहले आज इसी दिन, लौटे रघुवर घर-परिवार।
जल गए थे दीप सैकड़ों, अयोध्या नगरी में बनकर कतार
राम दरस की प्यासी अखियां, बरसाती स्नेहमय अश्रुधार।
थी हर मन में खुशी अपार, आशा थी जगती बारम्बार
जब राम लौटकर आएंगे, धरती के दिन फिर जाएंगे।
है मलिन और दुखित हृदय, हर ओर है पसरा अनाचार
हे राम! पुनः तुम आ जाओ, खोल भी दो त्रेता के द्वार।
रामराज्य की कल्पना, हम सबकी अब हो जाए साकार
भगवान आज तुम आ जाओ लेकर कल्कि का अवतार।
है घोर अंधेरा मन के भीतर, इसको सूझे आर न पार
वो शक्ति दो भगवान हमें, दुखों को जो दे पायें ललकार।
दीपों की अवली सजाई मैंने, अपने घर के द्वार
एक दीप ऐसा हो जो झंकृत कर जाए मन के तार।
दीन, दरिद्र, दुखी, पापी, सबके बन जाओ तारणहार
है समय बड़ा ही कठिन प्रभु, कर दो आशा का नवसंचार।