सबसे होंगे जो न्यारे
सबसे होंगे जो न्यारे


भरूँ कुलाँचे हिरनी जैसी
तोड़ चलूँ बँधन सारे
अपना ही प्रतिमान बनूँ अब
तोड़ गगन के सब तारे।।
कोमल हूँ कमजोर नहीं जो
लिख न सकूँ इतिहास नया
पंख मिलें हैं उड़ने को जब
नहीं चाहिए कभी दया
ऊँचे पर्वत गहरी खाई
संकल्पों से सब हारे।।
रात अँधेरी गहरी काली
रोक सके कब राहों को
चमक रही जुगनू सी आशा
फूल खिलें हैं चाहों के
लीक पीटते रहें यहाँ सब
समता के देते नारे।।
नदी बाँध को तोड़ बहे ज्यूँ
पवन रुके न रोके से
कदमों को कब रोक सकेगा
कोई अब यूँ धोखे से
लक्ष्य चुनूँ नव राह गढूँ अब
सबसे जो होंगे न्यारे।।